महाशिवरात्रि पर आपको क्या करना चाहिए
महाशिवरात्रि
हिन्दुओं के बड़े पर्वों में से एक है। दक्षिण भारतीय पंचांग (अमावस्यान्त पंचांग)
के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को यह पर्व मनाया जाता है। वहीं
उत्तर भारतीय पंचांग (पूर्णिमान्त पंचांग) के मुताबिक फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष
की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का आयोजन होता है। पूर्णिमान्त व अमावस्यान्त दोनों
ही पंचांगों के अनुसार महाशिवरात्रि एक ही दिन पड़ती है, इसलिए अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से
पर्व की तारीख वही रहती है। इस दिन शिव-भक्त मंदिरों में शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि
चढ़ाकर पूजा, व्रत तथा रात्रि-जागरण करते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से शिवलिंग पर सावनमास में दूध चढ़ाना स्वास्थ्य के लिए भी
लाभकारी होता है।
कैसे
और क्या करें
1. मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर 'शिवलिंग' पर चढ़ाना चाहिए। अगर आस-पास कोई शिव मंदिर नहीं है, तो घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर
उनका पूजन किया जाना चाहिए।
2. शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय
मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप इस दिन ध्यान से करना चाहिए।
साथ ही महाशिवरात्री के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है।
3. शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार
शिवरात्रि का पूजन 'निशीथ काल' में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है। हालांकि
भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं।
दूध चढ़ाया जाता है (कई बीमारियों से बच जाते हैं)
भगवान
शिव को सावन के महीने में ढेरों टन दूध चढ़ाया जाता है। यदि इस परंपरा को
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो इसके अन्य लाभ भी हैं। शिव भगवान दूसरों के कल्याण
के लिए हलाहल विषैला दूध भी पी सकते हैं। जिन चीजों से हमारे प्राणों का नाश होता है, मतलब जो विष है, वो सब कुछ शिवजी को भोग लगता है।
पुराने जमाने में जब श्रावण मास में हर जगह शिव रात्रि पर दूध चढ़ता था, तब लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने
में दूध विष के सामान है। ऐसे में वे इसलिए दूध त्याग देते थे कि कहीं उन्हें
बरसाती बीमारियां न घेर लें। आयुर्वेद के नजरिए से देखें तो सावन में दूध या दूध
से बने खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसमें वात की बीमारियां ज्यादा होती हैं। श्रावण के महीने
में ऋतु परिवर्तन के कारण शरीर में वात बढ़ता है। तभी हमारे पुराणों में सावन के
समय शिव को दूध अर्पित करने की प्रथा बनाई गई थी, क्योंकि सावन के महीने में गाय या भैंस घास के साथ कई कीडे़-मकौड़ों
का भी सेवन कर लेते हैं। जो दूध को हानिकारक बना देत हैं।
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